[190]+ Bachpan Shayari | बचपन पर शायरी
Bachpan shayari in hindi
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तभी तो याद है हमे
हर वक़्त बस बचपन का अंदाज
आज भी याद आता है
बचपन का वो खिलखिलाना
दोस्तों से लड़ना, रूठना, मनाना
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मोहल्ले में अब रहता है
पानी भी हरदम उदास
सुना है पानी में नाव चलाने
वाले बच्चे अब बड़े हो गए
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देर तक हँसता रहा उन पर हमारा बचपना
जब तजुर्बे आए थे संजीदा बनाने के लिए
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बचपन की खेल…..
भी गजब की न्यारी थी,,
कभी भट से चिढ़ जाना,,
तो फिर एक पल में भी मान जाना,,
न कोई रंजिश न कोई गम था,,
केवल मस्ती भरी दिन थे,,
और खुशीयों का साया था
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छुट गया वो खेलने जाना,
पेडोँ की छाँव मे वक्त बिताना.
वो नदियोँ मे नहाने जाना,
शाम ढले घर वापस आना.
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ले चल मुझे बचपन की,
उन्हीं वादियों में ए जिन्दगी…
जहाँ न कोई जरुरत थी,
और न कोई जरुरी था.!!
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कैमरे जरा कम थे मेरे गांव में,
जब बचपन देखना होता है,
तो मां की आंखों में झांक लेता हूं।
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करता रहूं बचपन वाली नादानियां उम्र भर,
ना जाने क्यों दुनिया वाले उम्र बता देते है।
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वो पूरी ज़िन्दगी रोटी,कपड़ा,मकान जुटाने में फस जाता है,
अक्सर गरीबी के दलदल में बचपन का ख़्वाब धस जाता है।
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चाँदके माथेपर बचपन की चोट के दाग़ नज़र आते हैं
रोड़े,पत्थर और गुल्लोंसे दिनभर खेला करता था
बहुत कहा आवारा उल्काओं की संगत ठीक नहीं!
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ज़िन्दगी के कमरे में एक बचपन का कोना है,
समेटनी हैं उसकी यादें,
और उन यादों में खोना है।
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कैसे भूलू बचपन की यादों को मैं,
कहाँ उठा कर रखूं किसको दिखलाऊँ?
संजो रखी है कब से कहीं बिखर ना जाए,
अतीत की गठरी कहीं ठिठर ना जाये.!
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अब भी तो है बचपना,
प्रेम करते हैं, पर मिल कर नहीं।
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वो बड़े होने से डरता है,
इसीलिए बचपना करता है।
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जी लेने दो ये लम्हे
इन नन्हे कदमों को,
उम्रभर दौड़ना है इन्हें
बचपन बीत जाने के बाद।
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मैं ने बचपन की ख़ुशबू-ए-नाज़ुक
एक तितली के संग उड़ाई थी
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वो रेत पर भी लिख देता था अपनी कहानी,
वो बचपन था उसे माफ़ थी अपनी नादानी।
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फिर मुझे याद आएगा ~बचपन
इक ज़माना गुमाँ से गुज़रेगा
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बचपन में भरी दुपहरी में नाप आते थे पूरा मोहल्ला,
जब डिग्रियां समझ में आई तो पांव जलने लगे।
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मिरी मैली हथेली पर तो बचपन से
ग़रीबी का खरा सोना चमकता है
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उम्र के साथ ज्यादा कुछ नहीं बदलता,
बस बचपन की ज़िद्द
समझौतों में बदल जाती है।
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ज़िन्दगी वक्त से पहले उम्र के तजुर्बे दे जाती है,
बालों की रंगत ना देखिए जिम्मेदारी बचपन ले जाती है।
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खुशियाँ भी हो गई है अब उड़ती चिड़ियाँ,
जाने कहाँ खो गई, वो बचपन की गुड़ियाँ।
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इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में
ढूँडता फिरा उस को वो नगर नगर तन्हा
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तू बचपन में ही साथ छोड़ गयी थी,
अब कहाँ मिलेगी ऐ जिन्दगी,
तू वादा कर किसी रोज ख़्वाब में मिलेगी।
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आते जाते रहा कर ए दर्द
तू तो मेरा बचपन का साथी है.
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बचपन की दोस्ती थी बचपन का प्यार था
तू भूल गया तो क्या तू मेरे बचपन का यार था
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बचपन भी क्या खूब था ,
जब शामें भी हुआ करती थी,
अब तो सुबह के बाद,
सीधा रात हो जाती है।
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बहुत शौक था बचपन में
दूसरों को खुश रखने का,
बढ़ती उम्र के साथ
वो महँगा शौक भी छूट गया।
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दौड़ने दो खुले मैदानों में,
इन नन्हें कदमों को जनाब
जिंदगी बहुत तेज भगाती है,
बचपन गुजर जाने के बाद
बचपन की वो यादें अब भी आती हैं
रोते में अब भी वो हँसा जाती हैं..!!
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ए ज़िंदगी! तू मेरी बचपन की गुड़िया जैसी बन जा,
ताकि जब भी मैं जगाऊँ तू जग जा।
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बचपन में खेल आते थे हर इमारत की छाँव के नीचे…
अब पहचान गए है मंदिर कौन सा और मस्जिद कौन सा..!!
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बस इतनी सी अपनी कहानी है,
एक बदहाल-सा बचपन,
एक गुमनाम-सी जवानी है।
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सीखने की कोई उम्र नही होती,
और फिर सीखते-सिखाते बचपन गुज़र गया।
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उम्र ने तलाशी ली, तो जेब से लम्हे बरामद हुए…
कुछ ग़म के थे, कुछ नम थे, कुछ टूटे…
बस कुछ ही सही सलामत मिले,
जो बचपन के थे…
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चुपके-चुपके ,छुप-छुपा कर लड्डू उड़ाना याद है.
हमकोअब तक बचपने का वो जमाना याद है..!!
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वो पुरानी साईकिल वो पुराने दोस्त जब भी मिलते है,
वो मेरे गांव वाला पुराना बचपन फिर नया हो जाता है।
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जो सोचता था बोल देता था,
बचपन की आदतें कुछ ठीक ही थी
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होठों पे मुस्कान थी कंधो पे बस्ता था..
सुकून के मामले में वो जमाना सस्ता था..!!
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शरारत करने का मन तो अब भी करता हैं,
पता नही बचपन ज़िंदा हैं या ख़्वाहिशें अधूरी हैं।
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बचपन के खिलौने सा कहीं छुपा लूँ तुम्हें,
आँसू बहाऊँ, पाँव पटकूँ और पा लूँ तुम्हें।
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फ़िक्र से आजाद थे और, खुशियाँ इकट्ठी होती थीं..
वो भी क्या दिन थे, जब अपनी भी,
गर्मियों की छुट्टियां होती थीं.
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तब तो यही हमे भाते थे,
आज भी याद हैं छुटपन की हर कविता,
अब हजारों गाने हैं पर याद नहीं,
इनमे शब्द हैं पर मीठा संगीत कहाँ.
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सपनों की दुनियाँ से तबादला हकीकत में हो गया,
यक़ीनन बचपन से पहले उसका बचपना खो गया।
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बचपन में आकाश को छूता सा लगता था
इस पीपल की शाख़ें अब कितनी नीची हैं
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याद आती है आज छुटपन की वो लोरियां,
माँ की बाहों का झूला ,
आज फिर से सूना दे माँ तेरी वो लोरी,
आज झुला दे अपनी बाहों में झूला.
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कभी कभी लगता है
लौट आए वो बचपन फिर से,
औऱ भूल जाए खुदको पापा की गोद मे।
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Jhooth Bolte The Phir Bhi Kitne Sachche The Hum,
Ye Un Dino Ki Baat Hai Jab Bachche The Hum.
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झूठ बोलते थे फिर भी कितने सच्चे थे हम,
यह उन दिनों की बात है जब बच्चे थे हम।
Kisne Kaha, Nahin Aati Wo Bachpan Waali Barish,
Tum Bhool Gaye Ho Shayad Ab Naav Banani Kagaz Ki.
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किसने कहा, नहीं आती वो बचपन वाली बारिश,
तुम भूल गए हो शायद अब नाव बनानी कागज़ की।
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काग़ज़ की कश्ती थी पानी का किनारा था,
खेलने की मस्ती थी ये दिल अवारा था,
कहाँ आ गए इस समझदारी के दल दल में,
वो नादान बचपन भी कितना प्यारा था।
Kagaz Ki Kashti Thi Pani Ka Kinara Tha,
Khelne Ki Masti Thi Dil Ye Awara Tha,
Kaha Aa Gye Samajhdari Ke Dal dal Mein,
Wo Nadaan Bachpan Bhi Kitna Pyara Tha.
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Ek Bachpan Ka Jamana Tha,
Jis Mein Khushiyon Ka Khajana Tha.
Chahat Chaand Ko Paane Ki Thi,
Par Dil Titli Ka Diwana Tha
Khabar Na Thi Kuchh Subah Ki,
Na Shaam Ka Thikaana Tha
Thak Kar Aana School Se,
Par Khelne Bhi Jaana Tha
Maan Ki Kahaani Thi,
Pareeyon Ka Phasaana Tha
एक बचपन का जमाना था,
जिस में खुशियों का खजाना था.
चाहत चाँद को पाने की थी,
पर दिल तितली का दिवाना था
खबर ना थी कुछ सुबह की,
ना शाम का ठिकाना था
थक कर आना स्कूल से,
पर खेलने भी जाना था
माँ की कहानी थी,
परीयों का फसाना था।
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Kitne Khoobsurat Hua Karte The
Bachpan Ke Wo Din,
Sirf Do Ungliyan Judne Se,
Dosti Fir Se Suru Ho Jaya Karti Thi.
कितने खुबसूरत हुआ करते थे
बचपन के वो दिन,
सिर्फ दो उंगलिया जुड़ने से,
दोस्ती फिर से शुरु हो जाया करती थी।
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Bachpan Bhi Kamal Ka Tha,
Khelte Khelte Chahen Chhat Par Soyen,
Ya Zameen Par,
Aankh Bistar Par Hi Khulti Thi.
बचपन भी कमाल का था,
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें,
या ज़मीन पर,
आँख बिस्तर पर ही खुलती थी।
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Yaad Aata Hai Wo Beeta Bachpan,
Jab Khushiyan Chhoti Hoti Thi.
Baag Mein Titli Ko Pakad Khush Hona,
Tare Todne Jitni Khushi Deta Tha.
याद आता है वो बीता बचपन,
जब खुशियाँ छोटी होती थी.
बाग़ में तितली को पकड़ खुश होना,
तारे तोड़ने जितनी ख़ुशी देता था।
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Na Kuchh Pane Ki Tamanna Na Kuchh Khone Ka Dar,
Bas Apni Hi Dhun, Bas Apne Sapno Ka Ghar,
Kaash Mil Jaye Phir Mujhe Wo Bachpan Ka Har Pal.
ना कुछ पाने की तमन्ना ना कुछ खोने का डर,
बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर,
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का हर पल।
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Koyi Mujhko Lauta De Wo Bachpan Ka Sawan,
Woh Kagaj Ki Kashti, Wo Barish Ka Paani.
कोई मुझको लौटा दे वो बचपन का सावन,
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी।
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Dekha Karo Kabhi Apni Maa Ki Aankhon Mein Bhi,
Ye Wo Aaina Hai Jismen Bachche Kabhi Boodhe Nahi Hote.
देखा करो कभी अपनी माँ की आँखों में भी,
ये वो आईना हैं जिसमें बच्चे कभी बूढ़े नही होते।
Wo Bachpan Ki Ameeri Na Jaane Kahaan Kho Gai
Jab Pani Mein Hamaare Bhi Jahaaj Chalte The….
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वो बचपन की अमीरी न जाने कहां खो गई
जब पानी में हमारे भी जहाज चलते थे…।
Mera Bachpan Bhi Saath Le Aaya,
Gaanv Se Jab Bhi Aa Gaya Koi.
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मेरा बचपन भी साथ ले आया,
गाँव से जब भी आ गया कोई।
Der Tak Hansta Raha Unn Par Humara Bachpana,
Jab Tajurbe Aaye The Sanjeeda Banaane Ke Liye.
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देर तक हँसता रहा उन पर हमारा बचपना,
जब तजुर्बे आए थे संजीदा बनाने के लिए।
Aur Toh Kuchh Nahi Badla Umr Barhne Ke Saath,
Bachpan Ki Jo Jid Thi Samjhauto Mein Badal Gayi.
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और तो कुछ नहीं बदला उम्र बढ़ने के साथ,
बचपन की जो ज़िद थी समझौतों में बदल गई।
Bachpan Ke Din Kitne Achhe Hote The,
Tab Dil Nahi Sirf Khilone Tuta Karte The,
Ab To Ek Aansu Tak Bhi Bardasht Nahi Hota,
Aur Bachpan Mein Jee Bharkar Roya Karte The.
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बचपन के दिन भी कितने अच्छे होते थे,
तब दिल नहीं सिर्फ खिलौने टूटा करते थे,
अब तो एक आंसू भी बर्दाश्त नहीं होता,
और बचपन में जी भरकर रोया करते थे।
Chalo Aaj Bachpan Ka Koi Khel Khelen,
Badi Muddat Hui Be-bajh Hans Kar Nahin Dekha.
चलो आज बचपन का कोई खेल खेलें,
बड़ी मुद्दत हुई बे-वजह हंसकर नहीं देखा।
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Zindagi Phir Kabhi Na Muskurai Bachpan Ki Tarha,
Maine Mitti Bhi Jama Ki Khilone Bhi Lekar Dekhe.
जिंदगी फिर कभी न मुस्कुराई बचपन की तरह,
मैंने मिट्टी भी जमा की खिलोने भी लेकर देखे।
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Ab Tak Humari Umr Ka Bachpan Nahi Rah Gaya,
Ghar Se Chale The Jeb Ke Paise Gira Diye.
अब तक हमारी उम्र का बचपन नहीं गया,
घर से चले थे जेब के पैसे गिरा दिए।
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Bachpan Me To Shaamein Bhi Hua Karti Thi,
Ab To Bas Subah Ke Baad Raat Ho Jaati Hai.
बचपन में तो शामें भी हुआ करती थी,
अब तो बस सुबह के बाद रात हो जाती है।
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Ajeeb Saudagar Hai Yeh Waqt Bhi,
Jabani Ka Lalach Deke Bachpan Le Gaya.
अजीब सौदागर है यह वक़्त भी,
जवानी का लालच देके बचपन ले गया।
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Sukoon Ki Baat Mat Kar Aye Dost,
Bachpan Wala Raviwaar Ab Nahi Aata.
सुकून की बात मत कर ऐ दोस्त,
बचपन वाला रविवार अब नहीं आता।
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वक्त से पहले ही वो हमसे रूठ गयी है,
बचपन की मासूमियत न जाने कहाँ छूट गयी है।
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आओ भीगे बारिश में
उस बचपन में खो जाएं
क्यों आ गए इस डिग्री की दुनिया में
चलो फिर से कागज़ की कश्ती बनाएं।
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असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
कहाँ गया मेरा बचपन ख़राब कर के मुझे
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शौक जिन्दगी के अब जरुरतो में ढल गये,
शायद बचपन से निकल हम बड़े हो गये।
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अजीब सौदागर है ये वक़्त भी
जवानी का लालच दे के बचपन ले गया.
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काश मैं लौट जाऊं…
बचपन की उन हसीं वादियों में ऐ जिंदगी
जब न तो कोई जरूरत थी और न ही कोई जरूरी था!
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कई सितारों को मैं जानता हूँ बचपन से
कहीं भी जाऊँ मेरे साथ साथ चलते हैं
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अपना बचपन भी बड़ा कमाल का हुआ करता था,
ना कल की फ़िक्र ना आज का ठिकाना हुआ करता था।
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जिंदगी फिर कभी न मुस्कुराई बचपन की तरह
मैंने मिट्टी भी जमा की खिलौने भी लेकर देखे.
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जब दिल ये आवारा था,
खेलने की मस्ती थी।
नदी का किनारा था,
कगज की कश्ती थी।
ना कुछ खोने का डर था,
ना कुछ पाने की आशा थी।
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एक हाथी एक
राजा एक रानी के बग़ैर
नींद बच्चों को नहीं
आती कहानी के बग़ैर।
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फ़रिश्ते आ कर उन के
जिस्म पर खुशबु लगाते है
वो बच्चे रेल के डिब्बों
मे जो झुण्ड लगाते है।
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बड़ी हसरत से इंसाँ
बचपने को याद करता है
ये फल पक कर
दोबारा चाहता है ख़ाम हो जाए।
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ना कुछ पाने की आशा ना कुछ खोने का डर
बस अपनी ही धुन, बस अपने सपनो का घर
काश मिल जाए फिर मुझे वो बचपन का पहर।
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एक इच्छा है भगवन मुझे सच्चा बना दो,
लौटा दो मेरा बचपन मुझे बच्चा बना दो।
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ईमान बेचकर बेईमानी खरीद ली
बचपन बेचकर जवानी खरीद ली,
न वक़्त, न खुशी, न सुकून
सोचता हूँ ये कैसी जिन्दगानी खरीद ली।
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मुमकिन है हमें गाँव भी
पहचान न पाए,
बचपन में ही हम घर
से कमाने निकल आए।
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ये दौलत भी ले लो ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझ से मेरी जवानी
मगर मुझ को लौटा दो बचपन का सावन
वो काग़ज़ की कश्ती वो बारिश का पानी।
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इतनी चाहत तो लाखो
रुपए पाने की भी नहीं होती,
जितनी बचपन की तस्वीर
देखकर बचपन में जाने की होती है।
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दूर मुझसे हो गया बचपन मगर
मुझमें बच्चे सा मचलता कौन है।
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वो क्याो दिन थे
मम्मी की गोद और पापा के कंधे,
न पैसे की सोच और न लाइफ के फंडे
न कल की चिंता और न फ्यूचर के सपने,
अब कल की फिकर और अधूरे सपने
मुड़ कर देखा तो बहुत दूर हैं अपने,
मंजिलों को ढूंडते हम कहॉं खो गए
न जाने क्यूँ हम इतने बड़े हो गए।
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भटक जाता हूँ
अक्सर खुद हीं खुद में,
खोजने वो बचपन जो कहीं खो गया है।
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दुआएँ याद करा दी गई थीं
बचपन में सो
ज़ख़्म खाते रहे और
दुआ दिए गए हम।
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मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है।
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याद आता है वो बीता बचपन,
जब खुशियाँ छोटी होती थी।
बाग़ में तितली को पकड़ खुश होना,
तारे तोड़ने जितनी ख़ुशी देता था।
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आशियाने जलाये जाते हैं जब तन्हाई की आग से,
तो बचपन के घरौंदो की वो मिट्टी याद आती है
याद होती जाती है जवां बारिश के मौसम में तो,
बचपन की वो कागज की नाव याद आती है।
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मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मेरे अंजाम की वो इब्तिदा थी
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अब तो खुशियाँ हैं इतनी बड़ी,
चाँद पर जाकर भी ख़ुशी नहीं,
एक मुराद हुई पूरी कि दूसरी आ गयी,
कैसे हो खुश हम, कोई बता दो,
अब तो बस दुःख भी हैं इतने बड़े,
कि हर बात पर दिल टुटा करता है।
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हँसते खेलते गुज़र जाये वैसी शाम नही आती,
होंठो पे अब बचपन वाली मुस्कान नही आती।
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कुछ अपनी हरकतों से,
तो कुछ अपनी मासूमियत से,
उनको सताया था मैंने,
कुछ वृद्धों और कुछ वयस्कों को,
इस तरह उनके बचपन से मिलाया था मैंने।
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देखो बचपन में तो बस शैतान था,
मगर अब खूंखार बन गया हूँ।
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वो शरारत, वो मस्ती का दौर था,
वो बचपन का मज़ा ही कुछ और था।
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मै उसको छोड़ न पाया बुरी लतों की तरह,
वो मेरे साथ है बचपन की आदतों की तरह.
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माना बचपन में,
इरादे थोड़े कच्चे थे।
पर देखे जो सपने,
सिर्फ वहीं तो सच्चे थे।
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चले आओ कभी टूटी हुई चूड़ी के टुकड़े से,
वो बचपन की तरह फिर से मोहब्बत नाप लेते हैं।
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कौन कहता है कि मैं जिंदा नहीं,
बस बचपन ही तो गया है बचपना नहीं।
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कितना आसान था बचपन में सुलाना हम को,
नींद आ जाती थी परियों की कहानी सुन कर.
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उड़ने दो परिंदों को अभी शोख़ हवा में,
फिर लौट के बचपन के ज़माने नहीं आते।
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बचपन की यादें मिटाकर बड़े रास्तों पे कदम बढ़ा लिया,
हालात ही कुछ ऐसे हुए की बच्चे से बड़ा बना दिया।
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लगता है माँ बाप ने बचपन में खिलौने नहीं दिए,
तभी तो पगली हमारे दिल से खेल गयी.
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बिना समझ के भी, हम कितने सच्चे थे,
वो भी क्या दिन थे, जब हम बच्चे थे।
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बचपन मैं यारों की यारी ने,
एक तोफ़ा भी क्या खूब दिया,
उनकी बातों के चक्कर में पड़,
माँ बापू से भी कूट लिया।
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आजकल आम भी पेड़ से खुद गिरके टूट जाया करते हैं
छुप छुप के इन्हें तोड़ने वाला अब बचपन नहीं रहा.
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दिल अब भी बचपना है
बचपन वाले सपने
अब भी ज़िंदा हैं!
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बचपन से बुढ़ापे का बस इतना सा सफ़र रहा है
तब हवा खाके ज़िंदा था अब दवा खाके ज़िंदा हूँ।।
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वो बचपन की नींद अब ख्वाब हो गई,
क्या उमर थी कि, शाम हुई और सो गये।
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बचपन से जवानी के सफर में,
कुछ ऐसी सीढ़ियाँ चढ़ते हैं..
तब रोते-रोते हँस पड़ते थे,
अब हँसते-हँसते रो पड़ते हैं।
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बचपन समझदार हो गया,
मैं ढूंढता हू खुद को गलियों मे।।
बचपन में लगी चोट पर मां की हल्की-हल्की फूँक
और कहना कि बस अभी ठीक हो जाएगा!
वाकई अब तक कोई मरहम वैसा नहीं बना!
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रोने की वजह भी न थी,
न हंसने का बहाना था;
क्यो हो गए हम इतने बडे,
इससे अच्छा तो वो बचपन का जमाना था।
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पुरानी अलमारी से देख मुझे खूब मुस्कुराता है,
ये बचपन वाला खिलौना मुझें बहुत सताता है।
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बचपन में मेरे दोस्तों के पास घड़ी नहीं थी…
पर समय सबके पास था!
आज सबके पास घड़ी है
पर समय किसी के पास नहीं!
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ऐ जिंदगी तू ले चल मुझे,
बचपन के उस गलियारे में,
जहाँ मिलती थी हमें खुशियाँ,
गुड्डे-गुड़ियों के ब्याह रचाने में।
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दहशत गोली से नही दिमाग से होती है,
और दिमाग तो हमारा बचपन से ही खराब है.
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वास्तविकता को जानकर,
मेरा भी सपनों से समझौता हुआ,
लोग यही समझते रहे,
लो एक और बच्चा बड़ा हुआ।
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कुछ ज़्यादा नहीं बदला बचपन से अब तक,
बस अब वो बचपन की जिंद समझौते में बदल रहीं है।
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मुखौटे बचपन में देखे थे, मेले में टंगे हुए,
समझ बढ़ी तो देखा लोगों पे चढ़े हुए।
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जैसे बिन किनारे की कश्ती,
वैसे ही हमारे बचपन की मस्ती।
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बचपन में तो शामें भी हुआ करती थी,
अब तो बस सुबह के बाद रात हो जाती है.
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माँ-पापा होते मेरे, बाहर दिनभर..
थक जाऊँ, उनका इंतज़ार कर;
वक्त बिताऊँ, गुमसुम मैं घर पर।
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फिर से बचपन लौट रहा है शायद,
जब भी नाराज होता हूँ खाना छोड़ देता हूँ।
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गुम सा गया है अब कही बचपन,
जो कभी सुकून दिया करता था।
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बचपन भी कमाल का था
खेलते खेलते चाहें छत पर सोयें या ज़मीन पर
आँख बिस्तर पर ही खुलती थी.
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पापा भी तो मेरे, हैं कितने प्यारे..
बड़े अच्छे, लाते ढेर सारे खिलौने;
पर रोज देर से आते, कितने थक कर।
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हर एक पल अब तो बस गुज़रे बचपन की याद आती है,
ये बड़े होकर माँ दुनिया ऐसे क्यों बदल जाती है।
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ची ल उड़ी, कौआ उड़ा,
बचपन भी कहीं उड़ ही गया.
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सब कुछ तो हैं, फ़िर क्यों रहूँ उदास..
तेरे जैसा मैं भी बन पाता मनमौजी;
लतपत धूल-मिट्टी से, लेता खुलकर साँस।
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कुछ यूं कमाल दिखा दे ऐ जिंदगी,
वो बचपन ओर बचपन के दोस्तो
से मिला दे ऐ जिंदगी।
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बचपन में…
जहां चाहा हंस लेते थे, जहां चाहा रो लेते थे!
पर अब…
मुस्कान को तमीज़ चाहिए और आंसूओं को तनहाई!
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कुछ नहीं चाहिए तुझ से ऐ मेरी उम्र-ए-रवाँ
मेरा बचपन मेरे जुगनू मेरी गुड़िया ला दे
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बहुत खूबसूरत था,
महसूस ही नहीं हुआ,
कब कहां और कैसे
चला गया बचपन मेरा।
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खुदा अबके जो मेरी कहानी लिखना
बचपन में ही मर जाऊ ऐसी जिंदगानी लिखना.
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दादाजी ने सौ पतंगे लूटीं
टाँके लगे, हड्डियाँ उनकी टूटी,
छत से गिरे, न बताया किसी को,
शैतानी करके सताया सभी को,
बचपन के किस्से सुनो जी बड़ों के।
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कोई तो रुबरु करवाओ
बेखोफ़ हुए बचपन से,
मेरा फिर से बेवजह
मुस्कुराने का मन हैं।
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चलो, फिर से बचपन में जाते हैं
खुदसे बड़े-बड़े सपने सजाते हैं
सबको अपनी धुन पर फिर से नचाते हैं
साथ हंसते हैं, थोड़ा खिलखिलाते हैं
जो खो गयी है बेफिक्री, उसे ढूंढ लाते हैं
चलो, फिर से बचपन में जाते हैं।
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सुकून की बात मत कर ऐ दोस्त,
बचपन वाला इतवार अब नहीं आता।
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कौन कहे मासूम हमारा बचपन था
खेल में भी तो आधा आधा आँगन था।
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जो सपने हमने बोए थे
नीम की ठंडी छाँवों में,
कुछ पनघट पर छूट गए,
कुछ काग़ज़ की नावों में।
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बचपन की कहानी याद नहीं
बातें वो पुरानी याद नहीं
माँ के आँचल का इल्म तो है
पर वो नींद रूहानी याद नहीं।
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वो बचपन भी क्या दिन थे मेरे
न फ़िक्र कोई न दर्द कोई
बस खेलो, खाओ, सो जाओ
बस इसके सिवा कुछ याद नही।
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चलो के आज बचपन का कोई खेल खेलें,
बडी मुद्दत हुई बेवजह हँसकर नही देखा।
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आसमान में उड़ती
एक पतंग दिखाई दी,
आज फिर से मुझ को
मेरी बचपन दिखाई दी।
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बचपन तुम्हारे साथ गुज़ारा है दोस्तो
ये दिल तुम्हारे प्यार का मारा है दोस्तो
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बचपन को कैद किया
उम्मीदों के पिंजरों में,
एक दिन उड़ने लायक कोई परिंदा नही बचेगा।
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बचपन में कितने रईस थे हम,
ख्वाहिशें थी छोटी-छोटी बस हंसना और हंसाना,
कितना बेपरवाह था वो बचपन.
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ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो
भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी
मगर मुझको लौटा दो बचपन का सावन
वो कागज़ की कश्ती, वो बारिश का पानी
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नींद तो बचपन में आती थी,
अब तो बस थक कर सो जाते है।
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लौटा देती ज़िन्दगी एक दिन नाराज़ होकर,
काश मेरा बचपन भी कोई अवार्ड होता.
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जिस के लिए बच्चा रोया था और पोंछे थे
आँसू बाबा ने वो बच्चा अब भी ज़िंदा है
वो महँगा खिलौना टूट गया
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खेलना है मुझे मेरी माँ की गोद में,
के फिर लौट के आजा मेरे बचपन।
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मेरी दोस्ती का फायदा उठा लेना, ?
क्युंकी मेरी दुश्मनी का नुकसान सह ?
नही पाओगे…!
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काग़ज़ की नाव भी है, खिलौने भी हैं बहुत
बचपन से फिर भी हाथ मिलाना मुहाल है
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जिम्मेदारियों ने वक्त से पहले
बड़ा कर दिया साहब,
वरना बचपन हमको भी बहुत पसंद था।
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इक ? चुभन है कि जो बेचैन किए रहती ? है,
ऐसा लगता है कि कुछ टूट गया है ? मुझ में.
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बचपन में शौक़ से जो घरौंदे बनाए थे
इक हूक सी उठी उन्हें मिस्मार देख कर
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अब वो खुशी असली नाव
मे बैठकर भी नही मिलती है,
जो बचपन मे कागज की नाव
को पानी मे बहाकर मिलती है।
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हंसने की भी, वजह ढूँढनी पड़ती है अब;
शायद मेरा बचपन, खत्म होने को है.
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फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता
जहाँ बच्चे नहीं होते वो घर अच्छा नहीं लगता
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मैं ने बचपन में अधूरा ख़्वाब देखा था कोई
आज तक मसरूफ़ हूँ उस ख़्वाब की तकमील में
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बचपन तो वहीं खड़ा इंतजार कर रहा है,
तुम बुढ़ापे की ओर दौड़ रहे हो।
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बचपन से पचपन तक का सफ़र यूं बीत गया साहब,
वक़्त के जोड़ घटाने में सांसे गिनने की फुरसत न मिली।
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मुझको यक़ीं है सच कहती थीं जो भी अम्मी कहती थीं
जब मेरे बचपन के दिन थे चाँद में परियाँ रहती थीं
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फिर से नज़र आएंगे किसी और में
हमारे ये पल सारे,
बचपन के सुनहरे दिन सारे।
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सुकून की बात मत कर ए ग़ालिब
बचपन वाला इतवार अब नही आता
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